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| | भगवानुवाच- मोहेच्छाद्वेषकर्ममूला प्रवृत्तिः| | | भगवानुवाच- मोहेच्छाद्वेषकर्ममूला प्रवृत्तिः| |
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| | तज्जा ह्यहङ्कारसङ्गसंशयाभिसम्प्लवाभ्यवपातविप्रत्ययाविशेषानुपायास्तरुणमिव द्रुममतिविपुलशाखास्तरवोऽभिभूयपुरुषमवतत्यैवोत्तिष्ठन्ते; यैरभिभूतो न सत्तामतिवर्तते| | | तज्जा ह्यहङ्कारसङ्गसंशयाभिसम्प्लवाभ्यवपातविप्रत्ययाविशेषानुपायास्तरुणमिव द्रुममतिविपुलशाखास्तरवोऽभिभूयपुरुषमवतत्यैवोत्तिष्ठन्ते; यैरभिभूतो न सत्तामतिवर्तते| |
| − | तत्रैवञ्जातिरूपवित्तवृत्तबुद्धिशीलविद्याभिजनवयोवीर्यप्रभावसम्पन्नोऽहमित्यहङ्कारः, यन्मनोवाक्कायकर्म नापवर्गाय ससङ्गः, कर्मफलमोक्षपुरुषप्रेत्यभावादयः सन्ति वा नेति संशयः, सर्वावस्थास्वनन्योऽहमहं स्रष्टा स्वभावसंसिद्धोऽहमहंशरीरेन्द्रियबुद्धिस्मृतिविशेषराशिरिति ग्रहणमभिसम्प्लवः, मम मातृपितृभ्रातृदारापत्यबन्धुमित्रभृत्यगणो गणस्यचाहमित्यभ्यवपातः, कार्याकार्यहिताहितशुभाशुभेषु विपरीताभिनिवेशो विप्रत्ययः, ज्ञाज्ञयोः प्रकृतिविकारयोः प्रवृत्तिनिवृत्त्योश्चसामान्यदर्शनमविशेषः, प्रोक्षणानशनाग्निहोत्रत्रिषवणाभ्युक्षणावाहनयाजनयजनयाचनसलिलहुताशनप्रवेशादयः समारम्भाःप्रोच्यन्ते ह्यनुपायाः| | + | |
| − | एवमयमधीधृतिस्मृतिरहङ्काराभिनिविष्टः सक्तः ससंशयोऽभिसम्प्लुतबुद्धिरभ्यवपतितोऽन्यथादृष्टिरविशेषग्राहीविमार्गगतिर्निवासवृक्षः सत्त्वशरीरदोषमूलानां सर्वदुःखानां भवति| | + | तत्रैवञ्जातिरूपवित्तवृत्तबुद्धिशीलविद्याभिजनवयोवीर्यप्रभावसम्पन्नोऽहमित्यहङ्कारः, |
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| | + | यन्मनोवाक्कायकर्म नापवर्गाय ससङ्गः, |
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| | + | कर्मफलमोक्षपुरुषप्रेत्यभावादयः सन्ति वा नेति संशयः, |
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| | + | सर्वावस्थास्वनन्योऽहमहं स्रष्टा स्वभावसंसिद्धोऽहमहंशरीरेन्द्रियबुद्धिस्मृतिविशेषराशिरिति ग्रहणमभिसम्प्लवः, |
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| | + | मम मातृपितृभ्रातृदारापत्यबन्धुमित्रभृत्यगणो गणस्यचाहमित्यभ्यवपातः, |
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| | + | कार्याकार्यहिताहितशुभाशुभेषु विपरीताभिनिवेशो विप्रत्ययः, |
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| | + | ज्ञाज्ञयोः प्रकृतिविकारयोः प्रवृत्तिनिवृत्त्योश्चसामान्यदर्शनमविशेषः, |
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| | + | प्रोक्षणानशनाग्निहोत्रत्रिषवणाभ्युक्षणावाहनयाजनयजनयाचनसलिलहुताशनप्रवेशादयः समारम्भाःप्रोच्यन्ते ह्यनुपायाः| |
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| | + | एवमयमधीधृतिस्मृतिरहङ्काराभिनिविष्टः सक्तः ससंशयोऽभिसम्प्लुतबुद्धिरभ्यवपतितोऽन्यथादृष्टिरविशेषग्राहीविमार्गगतिर्निवासवृक्षः सत्त्वशरीरदोषमूलानां सर्वदुःखानां भवति| |
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| | एवमहङ्कारादिभिर्दोषैर्भ्राम्यमाणो नातिवर्तते प्रवृत्तिं, सा च मूलमघस्य||१०|| | | एवमहङ्कारादिभिर्दोषैर्भ्राम्यमाणो नातिवर्तते प्रवृत्तिं, सा च मूलमघस्य||१०|| |
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